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जब भी पहलू में यार होता है
दिल को हासिल क़रार होता है
उस सितम को सितम नहीं कहते
जो सितम बार-बार होता है
कोई हँसता है सुन के हाले-ग़म
और कोई अश्क बार होता है
हाथ डालें ज़रा संभल के आप
फूल के पास ख़ार होता है
आजकल क़ूचा-ए-सियासत में
झूठ का कारोबार होता है
भूल बैठे हैं करके वो वादा
और इधर इंतिज़ार होता है
शेख़ चलते तो हैं सूए-काबा
रुख मगर कूए-यार होता है
चंद ग़ज़लों के बाद ऐ ‘नव्वाब’
शायरों में सुमार होता है
…………………….
देने चला है जान का नज़राना देखिये
लिपटा है जाके शम्अ से परवाना देखिये
बादाकशों का रंगे-शरीफ़ाना देखिये
एक बार चल के शेख़ जी मयख़ाना देखिये
मज़हब की इन किताबों ने आख़िर दिया है क्या
एक बार पढ़के प्यार का अफ़साना देखिये
दोनों ही घर ख़ुदा के हैं ऐ शेख़-ए-मोहतरम
एक ही नज़र से काबा-ओ-बुतख़ाना देखिये
बे-पर की लेके बैठे हैं वाइज़ नसीहतें
इक ना समझ का प्यार में समझाना देखिये
वाक़िफ़ है ख़ूब राहे गुज़र से जनाब की
मिल जाये फिर न राह में दीवाना देखिये
मरने लगे हैं वो भी उसी पर के जिस पे हम
यारों का ये सलूके-हरीफ़ाना देखिये
‘नव्वाब’ की है प्यास फ़क़त एक घूँट की
कब आये उसके हाथ में पैमाना देखिये
……………….
मुहब्बत का ज़ज्बा जगा कर के देखो
कभी दिल को तुम दिल बनाकर के देखो
हो तुम भी तभी तक कि जब तक कि हम हैं
न मानों तो हमको मिटाकर के देखो
कोई मुझपे इल्ज़ाम भरने से पहले
वफ़ायें मेरी आज़मा कर के देखो
ख़ुलूसो, मुहब्बत है क्या चीज़ ज़ाहिद
कभी मयकदे में ये आकर दे देखो
तुम्हें हम तो अपना बनाये हुए हैं
हमें तुम भी अपना बनाकर के देखो
न मिट जाये ग़म तो है ये मेरा ज़िम्मा
मगर शर्त है जाम उठाकर के देखो
भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुलाकर दे देखो
सियासत में ‘नवाब’ बाज़ीगरी का
तमाशा क़रीब और जाकर के देखो
नवाब शाहाबादी
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