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Javed Akhtar Shayari: एक पत्थर की अधूरी मूरत

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Javed Akhtar Shayari


आसार-ए-कदीमा


Javed Akhtar Shayari


एक पत्थर की अधूरी मूरत
चंद तांबें के पुराने सिक्के
काली चांदी के अजब जेवर
और कई कांसे के टूटे बर्तन


एक सहरा में मिले
जेरें-जमी
लोग कहते है की सदियों पहले
आज सहारा है जहां


वहीँ एक शहर हुआ करता था
और मुझको ये ख्याल आता है


किसी तकरीब
किसी महफ़िल में
सामना तुझसे मेरा आज भी हो जाता है
एक लम्हे को


बस एक पल के लिए
जिस्म की आंच
उचटती-सी नजर
सुर्ख बिंदिया की दमक

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